तुम्हारी उतारी हुई कुछ रातें
अब भी वैसी की वैसी पड़ी हैं बिस्तर पे
ओढ़ लेता हूँ उन्हें कभी जब नींद नहीं आती
तुम्हारे देखे हुए कुछ ख़्वाब
अब भी संभाल के रखे हैं तकिये के नीचे
ज़रूरत पड़े कभी तो ले जाना
तुम्हारी शोख़ हँसी अब भी
गूँजती है कमरे में कभी-कभी
ख़ामोशी रात की अब भी लरज़ जाती है
तुम्हारी सरगोशियों से
आइना मिस करता है अक्स तुम्हारा
और उनपे चिपकाई हुई बिंदियों को
अब भी जुस्तुजू होती है तुम्हारी पेशानी छूने की
चादरों से अब भी तुम्हारी ख़ुश्बू आती है
जो मेरे जिस्म को भी अब लग गयी है शायद
तुम तो चली गयी हो जाना
आदत तुम्हारी मगर अब भी नहीं जाती
नींद मेरी अटक गयी थी शायद तुम्हारी अंगड़ाई में
मेरे कॉल्स मेरे लफ़्ज़ न लौटाओ
मर्ज़ी तुम्हारी
बस नींद लौटा दो मुझे मेरी
रहमत तुम्हारी
Radio Jockey India | Indian Actor | Event Host | Columnist | Lecturer | Creative Director of Innovative Ideas